इस ज्ञान की क्या विशेषता है?

उपनिषद् में कहा गया है कि पराविद्या के द्वारा ही अक्षर ब्रह्म को जाना जाता है (मु. उ. १/५) । क़ुरआन में भी लिखा है कि इल्म-ए-लद्दुन्नी (श्री कुलजम स्वरूप) के आये बिना अर्श-ए-अज़ीम (परमधाम) और अल्लाह तआला (अक्षरातीत परब्रह्म) के राज़ (रहस्य) कोई नहीं बता सकता ।

किन एक बूंद न पाइया , रसना भी वचन । ब्रह्माण्ड धनियों देखिया , जो कहावे त्रैगुन ।। (प्र. हि. ३१/१०१)

तीनों लोक (पृथ्वी, स्वर्ग, वैकुण्ठ) के स्वामी ब्रह्मा, विष्णु, व शिव तथा तीनों गुण (सत्व, रज, तम) से निर्मित इस ब्रह्माण्ड में किसी ने भी अखण्ड परमधाम के ज्ञान के सागर की एक बूंद भी नहीं पाई । यह सब तो अक्षर ब्रह्म को भी नहीं जान सके ।

या वानी के कारने , कई करें तपसन । या वानी के कारने , कई पीवें अगिन ।। (प्र. हि. ३१/९५)

तारतम वाणी में निहित ज्ञान को पाने के लिए कइयों ने सात कल्पांत तक तपस्या की । कइयों ने अग्निपान किया । बहुत लोगों ने इस ज्ञान के लिए बड़ी-बड़ी साधनाएँ की, कुछ ने उपवास के कठोर नियम लिए, कइयों ने पहाड़ों की बर्फ में तप करते हुए अपना शरीर गला लिया, और कुछ ने इस कठिन लक्ष्य के लिए अपनी देह का दमन कर दिया।

आज लों इन इण्ड में , कबहूं काहू सुनी न कान । कई हुए इण्ड कई होवहीं , पर काहू न बोए पहिचान ।। (बीतक ७१/४)

अनादि काल से यह माया का नश्वर ब्रह्माण्ड बनता चला आ रहा है तथा अनन्त काल तक इसी प्रकार बनता-मिटता रहेगा । प्रत्येक सृष्टि में खरब-शंख से भी अधिक संख्या में प्राणी जन्म-मरण के इस चक्र (खेल) में उलझे रहते हैं, तत्पश्चात् प्रलय में समाप्त हो जाते हैं । परन्तु आज से पहले न तो अक्षर ब्रह्म को कोई जान पाया था, न ही आगे आने वाले ब्रह्माण्डों में कभी कोई जान सकेगा । ब्रह्मवाणी के अवतरण का सौभाग्य तो मात्र इसी ब्रह्माण्ड को प्राप्त हुआ है ।

श्री प्राणनाथ जी की कृपा से ही यह अखण्ड परमधाम का ज्ञान इस ब्रह्माण्ड में अवतरित हुआ । जिस ज्ञान को ढूंढते हुए ब्रह्माण्ड के स्वामी योगमाया (सबलिक ब्रह्म) से परे नहीं जा सके, श्री जी ने ऐसे अलौकिक ज्ञान को संसार के साधारण जीवों को भी उपलब्ध करा दिया है । इस वाणी की कृपा से ही संसार को अक्षरातीत परब्रह्म के धाम, स्वरूप, व लीला का बोध हो सका। जो जगत अक्षर ब्रह्म को भी नहीं पा सका था, उसे साक्षात् परमात्मा के साक्षात्कार करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है ।

परमधाम की आत्माओं के लिए इस वाणी का अलग महत्व है । जैसा कि बाइबल में कहा गया है कि परमात्मा की आवाज अर्थात् वाणी को उनकी आत्माएँ ही पहचानेंगी । अक्षरातीत की इस लीला में ब्रह्मसृष्टियां दुःख के खेल (संसार) में अपने असल स्वरूप व धाम धनी से अपने अखण्ड सम्बन्ध को विस्मृत कर चुकी हैं । श्री राज जी ने इस वाणी में उन्हें प्रबोधित करते हुए परमधाम की सभी बातों का वर्णन किया है । प्राणनाथ जी द्वारा अवतरित इस ज्ञान को पाए बिना आत्मा की जागनी असम्भव है । यह हांसी का खेल आत्माओं के लिए प्रेम की कसौटी है । जो आत्मा इस ज्ञान को गृहण करके इस पर अमल करेगी, वही धन्य-धन्य कहलायेगी ।